Wednesday, October 10, 2007

अनुराग मुस्कान- जै बोलो महाराज की...

जै बोलो महाराज की
-अनुराग मुस्कान
बोल परमपूज्यपाद प्रातःस्मर्णीय श्री बोलवचनानंद महाराज की जय। जयघोष के सम्वेत स्वरों की चीत्कार ने मुझे नींद से जगा दिया। हड़बड़ाकर उठा तो देखा पीतांबर वस्त्रों में लिपटे और माथे पर चंदन का लेप लगाए महाराज आलीशान एयरकंडीशन कार से उतर कर अपने चेलों के साथ मंच की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। भक्तजन महाराज के दर्शन मात्र पाकर कृतज्ञता से हाथ जोड़े नब्बे के कोण पर झुके जा रहे हैं। पत्नी ने जोरदार कोहनी मार कर मुझे भी वैसे ही झुकने का इशारा किया। मैं झुक गया। आधा तो वैसे भी पत्नी के समक्ष झुका ही रहता हूं, बचा आधा महाराज के सामने झुका तो मेरी मुद्रा साष्टांग सम हो गई। अब मैं पूरी तरह धर्म और आध्यात्म ही शरण में लेट चुका था। लेटा तो फिर आंख लगने लगी, तभी पत्नी ने ऐड़ी मारकर उठने का इशारा किया। मैं उठ बैठा। दरअसल मुझे ऐसे सत्संग और संत समागम वाले आयोजनों में जाने का कोई पूर्वाभ्यास नहीं है। वह तो मेरी पत्नी मुझे जबरन ही यहां घसीट लाई है। पत्नी को काफी दिनों से ऐसे किसी आयोजन में जाने की तीष्ण एवं तीव्र उत्कंठा थी। किटी पार्टी में आने वाली महिलाएं जब ऐसे आयोजनों में जाने के अपना अनुभव सुनाती थीं तो बेचारी मेरी पत्नी खुद को बहुत पिछड़ा हुआ महसूस करती थी। किन्तु बोलवचनानंद महाराज ने उसकी यह पीड़ा हर ली है। आज हम लोग भी झांड़-फानूसों से सुसज्जित एक भव्य एसी पंड़ाल में विराजमान हैं।
और लीजिए श्री बोलवचनानंद महाराज जी मंच पर आसीन हो चुके हैं। सर्वप्रथम उनके चरण कमलों को धोया जा रहा है। एक विशाल परात में महाराज पैर डाले बेठे हैं और चेले-चपाटे उनके पैर धो रहे हैं। महाराज के चरण कमलों को धो चुका जल तद्पश्चात चरणामृत में मिश्रित कर प्रसाद के साथ वितरित किया जाएगा। देर से प्रतीक्षारत भक्तजनों को महारज की मीठी वाणी का सुफल प्राप्त होने ही वाला है। महाराज प्रवचन आरंभ करने से पूर्व ध्यान में लीन हैं। संगीत में अर्ध पारंगत महाराज के चेले अपने काम चलाऊ ज्ञान के साथ तबला, हारमोनीयम, ढोलक और मजीरे थामे बिलकुल तैयार बैठे हैं। दो सुघड़ नवयौवनाएं मोर पंख से निर्मित पंखों को झल कर महाराज की आत्मा और उसमें निहित परमात्मा का ताप शांत कर रही हैं। 'आनंद की जय हो, उमंग की जय हो' के अमृत वचनों के साथ महाराज ध्यान से वापस लौटते हैं। आंखें खोलते ही सर्वप्रथम वह अग्रिम पंक्ति में सजे-धजे विशिष्ट और अतिविशिष्ट अतिथियों का प्रणाम स्वीकार कर रहे हैं। भक्तों में ही भगवान का वास है, ऐसा महाराज कई बार कहते हैं। इस समय भी महाराज पूंजीपति सज्जनों में देव और उनकी अर्धांगिनियों में देवी का नयनाभिराम दर्शन पा रहे हैं। चेलों ने मद्धम-मद्धम संगीत छेड़ दिया है। महाराज ने एक भक्ति रचना गाकर आयोजन का आरंभ किया। भक्तगण झूम उठे हैं। प्रवचन आरंभ होता है। महाराज भक्तों को जीवन-मरण और पाप-पुण्य का भेद बता रहे हैं। महाराज कह रहे हैं कि, 'हमें अपने कष्टों से घबराकर दूर नहीं भागना चाहिए, कष्टों के बीच रहकर उनका मुकाबला करना ही जीवन है।', यह ज्ञान महाराज ने स्वंय अपने गृहस्थ जीवन को त्याग कर, अपने परिवार से दूर हिमालय की पहाड़ियों के एकांत में ध्यान लगाकर प्राप्त किया है। महाराज कह रहे है कि, 'पुण्य कर्म करने वालों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और पाप कर्म करने वालों के नरक की।', बोल परमपूज्यपाद प्रातःस्मर्णीय श्री बोलवचनानंद महाराज की जय। जोरदार जयकारा लगा है। भक्तों को महाराज की बात जंच गई। किन्तु मेरे जैसे घोर अज्ञानी के लिए यह गूढ़ रहस्य समझना डॉन को पकड़ने की तरह मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है। मैंने तो अपने बुजुर्गों से सुना है कि स्वर्ग-नरक तो मात्र भ्रामक गंतव्य हैं। सब कुछ इसी धरती पर है, स्वर्ग भी, नरक भी। यह स्वर्ग-नरक व्यक्ति के कर्म फलों में परिलक्षित भी होते हैं। ऐसे ही जीवन और मरण में भेद बताने वाले अज्ञानी हैं। जीवन-मरण में कोई भेद नहीं है, दोनों अभेद हैं। जीवन और मरण में तो स्वयं भगवान भी भेद नहीं कर पाए तो फिर यह किसी साधु अथवा सन्यासी के लिए कैसे संभव है? यही बात जब मैंने अपनी पत्नी के कान में फुसफुसाकर बताई तो वह कुपित हो उठी, ऐसा लगा जैसे मुझे अभी श्राप देकर भस्म कर देगी। मेरी बुराई वह किसी से भी सुन सकती है, लेकिन श्री बोलवचनानंद महाराज के विरुद्ध कदापि किसी से कुछ नहीं सुन सकती। उस पर यह महाराज की ख्याति के प्रताप का प्रभाव है। उस पर ही क्या, मुझे छोड़कर यहां बैठे प्रत्येक व्यक्ति पर है।
महाराज का प्रवचन समाप्त हुआ। 'भगवान ने तुम्हे सब कुछ दिया किन्तु तुमने भगवान को क्या दिया?', कह कर महाराज दान-पात्र की ओर देख रहे हैं। भक्तगण महाराजाधिराज का संकेत भांप चुके हैं। दान-पात्र में धन वर्षा प्रारंभ हो चुकी है। महाराज स्पष्ट करते हैं कि, 'पिछली बार की तरह कोई भक्त कार की चाबी दानपात्र में न डाले। जिसे दान में कार देनी हो वह महाराज की समिति संयोजक महोदय से संपर्क करे और यदि कुछ भक्तों को गुप्तदान के अंतर्गत कार वगैराह देनी हैं तो वह कार न देकर धन का ही दान दें, गुप्तदान में कारें स्वीकार नहीं की जाएगीं।', महाराज गतवाक्य से आगे कहते हैं, 'अगले माह की चार तारीख को हम चार धाम यात्रा के लिए प्रस्थान कर रहे हैं, आप सुधि भक्तगण भी इस यात्रा में हमारे साथ चलकर पुण्यलाभ अर्जित करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। जिन्हे हमारे वाहन में, हमारे परम सानिध्य में यात्रा करने की इच्छा हो वह अमुक काउंटर पर एक लाख एक रुपए जोड़ा के हिसाब से भुगतान करके यात्रा का टिकट प्राप्त करें और सामान्य यात्रा के लिए यह राशि मात्र इक्यावन हजार रुपए होगी। यात्रा से संबंधित प्रत्येक जानकारी टिकट के साथ उपलब्ध होगी। इच्छुक भक्त हजार और पांच सौ रुपए देकर अपनी सीट आरक्षित एवं सुरक्षित करा सकते हैं।', महाराज के श्रीमुख से इतना सुनते ही भक्तगण यात्रा बुकिंग काउंटर की ओर टूट पड़े। वहां जाकर यात्रा की नियम एंव शर्तें ज्ञात हुईं, यात्रा में बच्चों और बुजुर्गों को ले जाने की सख्त मनाही थी। बच्चों और बुजुर्गों की अनिश्चित स्वास्थ्य संबंधी स्थितियां और यात्रा की थकावट के प्रतिकूल प्रभाव को झेल पाने की उनकी क्षीण क्षमता यात्रा में कहीं भी और कभी भी व्यवधान पैदा कर सकती है। सो बच्चे और बुजुर्ग महाराज की फोटो ले जाकर घर में उनका ध्यान लगाएं, पुण्यलाभ होगा। महाराज की फोटो प्रत्येक साइज़ में यात्रा बुकिंग काउंटर के बराबर वाले काउंटर पर बिक्री के लिए उपलब्ध है। अब पंडाल में प्रसाद एवं चरणामृत ग्रहण कर लेने की उदघोषणा हो रही है। छोटे-छोटे कुछ बच्चों को प्रसाद वितरण खिड़की से धुड़काकर खदेड़ा जा रहा है, यह वही बच्चे हैं जिन्हे पांच-पांच रुपए देकर इस आयोजन के लिए क्रिकेट का यह मैदान साफ कराया गया था।
पंडाल में रेलमपेल मची है। कोई प्रासद एवं चरणामृत काउंटर की ओर भाग रहा है, कोई यात्रा बुकिंग काउंटर की ओर और कोई फोटो बिक्री काउंटर की ओर। महाराज बोलवचनानंद इस समय कुछ विशेष एवं विशिष्ट दानदाताओं और उनके परिजनों को स्नेहाशीष प्रदान कर रहे हैं। मंच पर केवल वही चढ़ सकता है जिसके पास एक लाख रुपए प्रति माह महादान की पावती है। शेष दूर से ही महाराज के दर्शन पाकर धन्य हो रहे हैं। तभी अचानक एक और उदघोषणा होती है। यह रविवार को प्रवचन के समापन पर होने वाले महाभोज से संबंधित उदघोषणा है। इसमें सभी से तन, मन एवं धन से भरपूर सहयोग करने की अपील दोहराई जा रही है। उदघोषक धन पर ज्यादा ही जोर दे रहा है। साथ ही यह भी बताता जा रहा है कि 'चमाचम ज्वेलर्स' वाले सेठजी के सौजन्य से महाभोज में बनने वाली खीर के लिए एक क्विटंल चीनी प्राप्त हुई है, चावल एवं दूध के लिए दान देने के इच्छित भक्त शीघ्र संपर्क करें। धनिया, मटर, टमाटर, गरम मसाला, और तेल से लेकर आटा और पेयजल तक दानदाताओं के नाम पुकारे जा रहे हैं। ब्रेड, शीतलपेय, पान मसाला एवं गुटखा के मालिकों के अलावा बड़े-बड़े उद्दोगपति, कौन नहीं है इस कतार में। महाराज की धोती से लेकर पूजा में प्रयुक्त होने वाली अगरबत्ती तक स्पान्सर्ड हो चुकी है। महाभोज का 'महात्व' स्पष्ट और व्यापक होता जा रहा है।
अब महाराज उठ खड़े हुए हैं। वह अब प्रस्थान करेंगे। अपने भक्तगणों के बाच से होते हुए महाराज अपनी आलीशान एयरकंडीशन कार की ओर तेज चाल से बढ़ रहे हैं। भक्तगणों में उनके चरणस्पर्श करने को लेकर मची होड़ मारामारी तक पहुंच चुकी है। कुछ भक्त जमीन पर पड़ चुके महाराज के चरण वाले स्थान से धूल उठाकर अपने साथ लाई पॉलिथिन की थैलियों में भरने के लिए लपक रहे हैं। यह मामूली धूल नहीं, महाराज श्री बोलवचनानंद की चरणरज है। पत्नी एक बार फिर मुझसे नाराज है, मैं उसके कहने के बावजूद घर से पॉलिथिन की थैली लाना जो भूल गया। बोल परमपूज्यपाद प्रातःस्मर्णीय श्री बोलवचनानंद महाराज की जय के जयकारे के साथ आज का प्रवचन संपन्न होता है।
('सरिता' अक्टूबर 2007 द्वितीय में प्रकाशित)

1 comment:

ALOK PURANIK said...

भौत दिनों बात चमके भईया, आते रहा करो।